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दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

आज हम आपको मसालों में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली दालचीनी के बारे में बताने जा रहे हैं। दालचीनी के अंदर विघमान कई सारे औषधीय गुण लोगों के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होते हैं। बतादें, कि कोरोना काल में दालचीनी का इस्तेमाल काफी बढ़ गया। दालचीनी की मांग विगत कई सालों से बाजार में सदैव अच्छी-खासी बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में किसान इसकी खेती से काफी अच्छा लाभ उठा सकते हैं। चलिए आपको दालचीनी की खेती से संबंधित कुछ अहम जानकारी देते हैं। दालचीनी दक्षिण भारत का एक प्रमुख पेड़ है। इस वृक्ष की छाल का दवाई और मसालों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। दालचीनी एक छोटा सदाबहार पेड़ होता है, जो कि 10–15 मीटर ऊँचा होता है। दालचीनी की खेती दक्षिण भारत के तमिलनाडू एवं केरल में इसका उत्पादन किया जाता है। दालचीनी के छाल का इस्तेमाल हम मसालों के तौर पर करते हैं। इस पौधे की पत्तियों का इस्तेमाल हम तेजपत्ते के तौर पर करते हैं।

दालचीनी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा

दालचीनी एक उष्णकटिबंधीय पेड़ की श्रृंखला में आता है। यह पौधा ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु को आसानी से झेलने की क्षमता रखता है। इस जलवायु की वजह से पौधे का विकास और छाल की नकल बेहतर होती है। इस वजह से इसे नारियल एवं सुपारी के बागों में उत्पादित किया जा सकता है। परंतु, आवश्यकता से अधिक छाया दालचीनी को प्रभावित कर देती है। साथ ही, पेड़ भी कीटों की बली चढ़ जाते हैं। इस फसल को मध्यम जलवायु में खुले मैदान में अलग से भी पैदा किया जा सकता है। यह भी पढ़ें: इस औषधीय पेड़ की खेती से किसान जल्द ही हो सकते हैं मालामाल, लकड़ी के साथ छाल की मिलती है कीमत

दालचीनी की खेती के लिए भूमि की तैयारी एवं रोपण

दालचीनी के रोपण हेतु जमीन को साफ करके 50 से.मी.X50 से.मी. के गड्ढे 3 मी.X 3मी. के फासले पर खोदना चाहिए। इन गड्ढों में रोपण से पूर्व कम्पोस्ट और ऊपरी मिट्टी को भर देते हैं। दालचीनी के पौधों को जून-जुलाई में रोपित करना अच्छा होता है, क्योंकि पौधे को स्थापित होने में मानसून का फायदा मिल जाता है। 10-12 माह पुराने बीज द्वारा उत्पादित पौधे, अच्छी तरह मूल युक्त कतरनें अथवा एयर लेयर का उपयोग रोपण में करना चाहिए। 3-4 बीज द्वारा उत्पादित पौधे, मूल युक्त कतरनें या एयर लेयर पति गड्ढे में रोपण करना चाहिए। कुछ मामलों में बीजों को सीधे गड्ढे में डाल कर उसे कम्पोस्ट और मृदा से भर देते हैं । शुरूआती सालों में पौधों के अच्छे स्वास्थ्य और उपयुक्त विकास के लिए आंशिक छाया प्रदान करनी चाहिए। जून, जुलाई माह में तैयार किए गए गड्ढों के मध्य में दालचीनी का पौधरोपण करना चाहिए। इस दौरान एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि रोपण के पश्चात बारिश का पानी बंधा में इकठ्ठा ना हो।

दालचीनी की किस्में

अगर हम दालचीनी की किस्मों की बात करें तो कोंकण कृषि विश्वविद्यालय द्वारा साल 1992 में कोंकण तेज की खोज और प्रचार-प्रसार किया है। यह किस्म छाल और पत्तियों से तेल निकालने के लिए बेहतर मानी जाती है। दालचीनी में 6.93 प्रतिशत यूजेनॉल, 3.2 प्रतिशत तेल और 70.23 प्रतिशत सिनामोल्डेहाइड मौजूद होता है। यह भी पढ़ें: चंदन के समान मूल्यवान इन पेड़ों की लकड़ियां बेचकर होश उड़ाने वाला मुनाफा हो सकता है

दालचीनी के पेड़ के लिए उर्वरक

दालचीनी के पेड़ में प्रथम वर्ष 5 किलो खाद या कम्पोस्ट, 20 ग्राम नाइट्रेट (40 ग्राम यूरिया), 18 ग्राम फास्फोरस (115 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट), 25 ग्राम पोटाश (45 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) ड़ाली जाए। इस उर्वरक की मात्रा प्रति वर्ष इसी प्रकार बढ़ानी चाहिए एवं 10 वर्ष के पश्चात 20 किलो खाद अथवा कम्पोस्ट, 200 ग्राम नाइट्रोजन (400 ग्राम यूरिया), 180 ग्राम फॉस्फोरस (सिंगल सुपर फास्फेट का 1 किलो 100 ग्राम) डालें। , 250 ग्राम पोटाश (पोटाश का 420 ग्राम म्यूरेट) देना उचित होता है।

दालचीनी के पेड़ों लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

बीजू अगंमारी

यह रोग डिपलोडिया स्पीसीस द्वारा पौधों में पौधशाला के दौरान होता है। कवक के द्वारा तने के चहुंओर हल्के भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं। अत: पौधा बिल्कुल नष्ट हो जाता है। इस रोग की रोकथाम करने के लिए 1% प्रतिशत बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।

भूरी अगंमारी

यह रोग पिस्टालोटिया पालमरम की वजह से होता है। इसके प्रमुख लक्षणों में छोटे सफेद रंग का धब्बा होता है, जो कुछ समय के पश्चात स्लेटी रंग का होकर भूरे रंग का किनारा बन जाता है। इस रोग पर सहजता से काबू करने के लिए 1% प्रतिशत बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए। यह भी पढ़ें: वरुण नामक ड्रोन 6 मिनट के अंदर एक एकड़ भूमि पर छिड़काव कर सकता है

कीट दालचीनी तितली

दालचीनी तितली (चाइलेसा कलाईटिया) नवीन पौधों एवं पौधशाला का प्रमुख कीट माना जाता है। आमतौर पर यह मानसून काल के पश्चात नजर आता है। इस का लार्वा कोमल और नई विकसित पत्तियों को खाता है। अत्यधिक ग्रसित मामलों में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है और केवल पत्तियों के मध्य की उभरी हुई धारी ही बचती है। इसकी वयस्क बड़े आकर की तितली होती है एवं यह दो तरह की होती है। पहले बाहरी सतह पर सफेद धब्बे नुमा काले भूरे रंग के पंखों और दूसरी के नील सफेद निशान के काले रंग के पंख उपस्थित होते हैं। पूरी तरह से विकसित लार्वा तकरीबन 2.5 से.मी. लम्बे पार्श्व में काली धारी समेत हल्के पीले रंग का होता है। इस कीट को काबू में करने के लिए कोमल और नई विकसित पत्तियों पर 0.05% क्वानलफोस का छिड़काव करना फायदेमंद होता है।

लीफ माइनर

लीफ माइनर (कोनोपोमोरफा सिविका) मानसून काल के दौरान पौधशाला में पौधों को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाने वाला प्रमुख कीट माना जाता है। इसका वयस्क चमकीला स्लेटी रंग का छोटा सा पतंगा होता है। इसका लार्वा प्रावस्था में हल्के स्लेटी रंग का उसके उपरांत गुलाबी रंग का 10 मि.मीटर लम्बा होता है। यह कोमल पत्तियों की ऊपरी और निचली बाह्य आवरण (इपिडरमिस) के उतकों को खाकर उस पर छाले जैसा निशान छोड़ देते हैं। ग्रसित पत्ती मुरझाकर सिकुड़ जाती हैं एवं पट्टी पर बड़ा सा छेद भी बन जाता है। इस कीट पर नियंत्रण पाने हेतु नवीन पत्तों के निकलने पर 0.05% क्वनालफोस का छिड़काव करना काफी अच्छा होता है। सुंडी और बीटल भी दालचीनी के नए पत्तों को प्रभावी तौर पर खाते हैं। क्वनालफोस 0.05% को डालने से इसको भी काबू में कर सकते हैं।

पर्ण चित्ती एवं डाई बैंक

पर्ण चित्ती और डाई बैक रोग कोलीटोत्राकम ग्लोयोस्पोरियिड्स की वजह से होता है। पत्तियों की पटल पर छोटे गहरे सफेद रंग के धब्बे आ जाते हैं, जो नाद में एक दूसरे से मिलके अनियमित धब्बा तैयार करते हैं। कई बार देखा गया है, कि पत्तों के संक्रमित हिस्से पर छेड़ जैसा निशान नजर आता है। इसके पश्चात संपूर्ण पत्ती भाग संक्रमित हो जाता है। इतना ही नहीं यह संक्रमण तने तक फैलकर डाई बैक की वजह बनता है। इस रोग की रोकथाम करने के लिए संक्रमित शाखाओंं की कटाई-छटाई एवं 1% बोर्डियो मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।
राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार किसानों को फल और मसालों की खेती के लिए प्रोत्साहन राशि दे रही है।

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान प्रदान करेगी। दरअसल, राज्य में किसानों को पारंपरिक फसलें जैसे कि मक्का, गेहूं और सरसों आदि की खेती से अच्छी आमदनी नहीं हो पा रही है। राजस्थान में किसान अब बागवानी और मसालों की खेती करेंगे। इसके लिए किसानों को राज्य सरकार की तरफ से अच्छी खासी सब्सिडी मुहैय्या कराई जाएगी। मुख्य बात यह है, कि सब्सिडी पाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार द्वारा करोड़ों रुपये की धनराशि स्वीकृत कर दी है। अगर राजस्थान के किसान फल और मसालों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत तक अनुदान मिलेगा। इसके लिए उन्हें राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा।

राजस्थान के किसानों को पारंपरिक फसलों से कोई लाभ नहीं मिला

राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन और कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसानों को अनुदान देगी। दरअसल, राज्य सरकार का यह मानना है, कि प्रदेश में किसान भाइयों को गेहूं, सरसों एवं मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की खेती से अच्छी आय नहीं हो पा रही है। अगर प्रदेश के किसान आधुनिक विधि से बागवानी और मसालों की खेती करते हैं, तो किसानों की आमदनी में काफी बढ़ोतरी हो सकती है। यही कारण है, कि राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बागवानी और मसाले के क्षेत्रफल में विस्तार करने के लिए 23.79 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। ये भी पढ़े: दालचीनी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी (How to Grow Cinnamon)

राजस्थान सरकार 7609 हेक्टेयर में फल के बगीचे तैयार कर रही है

सरकारी अधिकारियों के अनुसार, राजस्थान सरकार ने वर्ष 2023-24 में 7609 हेक्टेयर भूमि में फल के बगीचे तैयार करने की योजना तैयार की है। इसके ऊपर सरकार सब्सिडी के तौर पर 22.40 करोड़ रुपये खर्च करेगी। साथ ही, मसाले के रकबे के विस्तार पर अनुदान धनराशि के रूप में 1.39 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। मुख्यमंत्री कार्यालय के अनुसार, सीएम गहलोत द्वारा मंजूर किए गए 23.79 करोड़ रुपये में से 17.24 करोड़ रुपये की धनराशि राजस्थान कृषक कल्याण कोष में से प्रदान की जाएगी। साथ ही, 6.55 करोड़ रुपये राष्ट्रीय बागवानी मिशन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना से खर्च किए जाएंगे।

राजस्थान सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है

मुख्य बात यह है, कि राजस्थान में सरकार पूर्व से ही मसालों की खेती पर अनुदान मुहैय्या कर रही है। साथ ही, किसानों को आधुनिक विधि से मसालों की खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। लेकिन, इस योजना के अंतर्गत ज्यादा से ज्यादा 4 हेक्टेयर एवं कम से कम 0.50 हेक्टेयर में मसालों की खेती करने वाले किसान अनुदान का फायदा उठा सकते हैं। किसानों को 40 प्रतिशत अनुदानित धनराशि दी जाएगी। मतलब कि उन्हें प्रति हेक्टेयर 5500 रुपये अनुदान के रूप में मिलेंगे।

अनुदान का फायदा लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज

अगर किसान भाई अनुदान का फायदा उठाना चाहते हैं, तो नजदीकी ई-मित्र केंद्र अथवा राजकिसान साथी पोर्टल पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करते समय किसान के पास खुद की खेत की जमाबंदी, आधार कार्ड, खेती योग्य जमीन, इलेक्ट्रिसिटी बिल, बैंक पासबुक की कॉपी और स्थानीय आवासीय प्रमाण पत्र होना काफी अनिवार्य है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत योगी सरकार बागवानी फसलों की खेती के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत योगी सरकार बागवानी फसलों की खेती के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत लहसुन, प्याज, मिर्च, गेंदा, लीची, शिमला मिर्च, अमरूद, कद्दू और रंजनीगंधा की खेती करने के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में बागवानी की खेती करने वाले कृषकों के लिए अच्छी खबर है। बीजेपी सरकार हरी सब्जी, मसाले और फलों की खेती करने वाले कृषकों को अनुदान मुहैय्या करा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार यह मानती है, कि पारंपरिक खेती की तुलना में बागवानी फसलों की खेती में ज्यादा मुनाफा होता है। यदि उत्तर प्रदेश के किसान मसाले, फल और सब्जियों का उत्पादन करते हैं, तो मोटी आमदनी अर्जित कर सकते हैं।

हापुड़ जनपद में बागवानी हेतु 50 प्रतिशत अनुदान

वर्तमान में हापुड़ जनपद के किसान अनुदान का लाभ उठा सकते हैं। जिला उद्यान विभाग राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत सब्जी, फल, फूल और मसालों की खेती करने पर अनुदान प्रदान कर रही है। विशेष बात यह है, कि यदि किसान भाई इनकी खेती करना चाहते हैं, तो विद्यान विभाग उनको 50 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान करेगा। यदि किसान भाई अनुदान का फायदा लेना चाहते हैं, तो वह घर बैठे ही ऑनलाइन माध्यम से आवेदन कर सकते हैं।

कृषकों को अन्य फसलों का उत्पादन करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि हापुड़ जनपद में किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ बागवानी फसलों की भी खेती करते हैं। परंतु, सरकार जनपद में बागवानी का क्षेत्रफल और बढ़ाना चाहती है। यही कारण है, कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत अनुदान देने का निर्णय लिया गया है। जिला उद्यान अधिकारी डॉ. हरित कुमार ने बताया है, कि जनपद में कृषकों को गेहूं एवं गन्ने के अतिरिक्त दूसरी फसलों की खेती करने के लिए भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे कि प्रत्येक वर्ग के किसानों को पहले की तुलना में अधिक आय अर्जित हो सके।

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जानें कितने प्रतिशत अनुदान मिलेगा

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत कद्दू, लहसुन, प्याज, मिर्च, गेंदा, रंजनीगंधा, लीची, शिमला मिर्च और अमरूद की खेती करने के लिए किसानों को अनुदान दिया जा रहा है। उद्यान अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत यदि कृषक भाई 30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम, ड्रेगन फ्रूट, अमरूद और पपीता की खेती करते हैं, तो उन्हें 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जाएगा। यदि किसान भाई 30 हेक्टेयर में रजनीगंधा, ग्लेडियोलस और गेंदा जैसे फूलों की खेती करते हैं, तो उन्हें 40 प्रतिशत अनुदान मिलेगा।

कृषक भाई अनुदान हेतु यहां करें ऑनलाइन आवेदन

बतादें, कि इसके अतिरिक्त लौकी, करेला, शिमला मिर्च, तोरई, खीरे, पत्तागोभी, टमाटर और फूलगोभी की बुवाई 205 हेक्टेयर में करते हैं, तो इस पर कृषक भाइयों को 40 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। इसी प्रकार 245 हेक्टेयर में लहसुन, प्याज और मिर्च की खेती करने पर 40 फीसदी तक अनुदान मिलेगा। यदि इच्छुक कृषक भाई चाहें, तो अनुदान का लाभ उठाने के लिए www.rkvy.nic.in पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
जानें मेथी की इन टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में

जानें मेथी की इन टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में

मेथी की यह टॉप पांच उन्नत प्रजतियाँ पूसा कसूरी, आर.एस.टी 305, राजेंद्र क्रांति, ए.एफ.जी 2 एवं हिसार सोनाली प्रजाति किसानों को कम समय में ही प्रति एकड़ लगभग 6 क्विंटल तक उपज देती हैं। बाजार में इन किस्मों कीमत भी काफी अधिक है। मेथी एक प्रकार की पत्तेदार वाली फसल है, जिसका उत्पादन भारत के तकरीबन समस्त किसान अपने खेत में कर बेहतरीन व शानदार कमाई कर रहे हैं। दरअसल, मेथी हमारे शरीर के लिए बेहद लाभकारी होती है। क्योंकि, इसके अंदर प्रोटीन, सूक्ष्म तत्त्व विटामिन विघमान होते हैं। इसलिए बाजार में इसकी मांग सबसे ज्यादा होती है। ऐसी स्थिति में यदि आप मेथी की उन्नत किस्मों की खेती करते हैं, तो आप कम वक्त में भी शानदार उपज हांसिल कर सकते हैं। मेथी की ये टॉप पांच उन्नत किस्में पूसा कसूरी, आर.एस.टी 305, राजेंद्र क्रांति, ए.एफ.जी 2 और हिसार सोनाली प्रजाति हैं, जो प्रति एकड़ में तकरीबन 6 क्विंटल तक उत्पादन देने में सक्षम हैं।

मेथी की टॉप पांच उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं

मेथी की राजेंद्र क्रांति किस्म

मेथी की राजेंद्र क्रांति प्रजाति से किसान प्रति एकड़ तकरीबन 5 क्विंटल तक शानदार पैदावार हांसिल कर सकते हैं। मेथी की यह किस्म खेत में तकरीबन 120 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है।

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मेथी की पूसा कसूरी किस्म

मेथी की पूसा कसूरी किस्म में फूल काफी विलंभ से आते हैं। किसान इस किस्म की एक बार बिजाई करने के बाद लगभग 5-6 बार उपज प्राप्त कर सकते हैं। मेथी की इस किस्म के दाने छोटे आकार के होते हैं। किसान पूसा कसूरी से प्रति एकड़ 2.5 से 2.8 क्विंटल उपज आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

मेथी की आर.एम.टी. 305 किस्म

मेथी की यह किस्म बेहद शीघ्रता से पककर तैयार हो जाती है। मेथी की आर.एम.टी. 305 किस्म में चूर्णिल फफूंद रोग और मूल गांठ सूत्रकृमि रोग नहीं लगते हैं। किसान इस प्रजाति से प्रति एकड़ लगभग 5.2 से 6 क्विंटल तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।

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मेथी की ए.एफ.जी 2 किस्म

मेथी की इस प्रजाति के पत्ते बेहद चौड़े होते हैं। किसान मेथी की ए.एफ.जी 2 किस्म की एक बार बिजाई करने के पश्चात लगभग 3 बार कटाई कर उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। इस किस्म के दाने छोटे आकार में होते हैं। किसान मेथी की इस प्रजाति से प्रति एकड़ 7.2 से 8 क्विंटल पैदावार अर्जित कर सकते हैं।